जगन्नाथ रथ यात्रा 2025: ओडिशा के पुरी में हर साल निकलने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा इस बार 27 जून से शुरू होगी। जानिए रथ यात्रा की तिथि, शुभ योग, हर दिन का कार्यक्रम और इससे जुड़ी धार्मिक परंपराएं।

- रथ यात्रा 2025 की शुरुआत 27 जून, शुक्रवार से होगी।
- भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन रथों में सवार होंगे।
- यात्रा 12 दिनों तक चलेगी, समापन 8 जुलाई को होगा।
- ऐसा माना जाता है कि इसमें भाग लेने से सौ यज्ञों जितना पुण्य मिलता है।
ओडिशा के पुरी में स्थित विश्व प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर के लिए आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि बहुत ही खास मानी जाती है, क्योंकि इसी दिन से हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत होती है।
इस बार यह भव्य यात्रा 27 जून, शुक्रवार से शुरू होगी। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा तीन अलग-अलग रथों में सवार होकर अपनी मौसी के घर, यानी गुंडिचा मंदिर जाएंगे।
भगवान जगन्नाथ नंदीघोष रथ पर, बलभद्र जी तालध्वज रथ पर और सुभद्रा जी दर्पदलन रथ पर सवार होंगी। यह रथ यात्रा 27 जून से शुरू होकर 8 जुलाई तक चलेगी और इसका पूरा कार्यक्रम 12 दिनों का होता है। हालांकि इसकी तैयारियां कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु इस पावन अवसर पर पुरी पहुंचते हैं ताकि भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर सकें और इस ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा बन सकें।
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 की तिथि, मुहूर्त और खास संयोग
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 की शुरुआत हर साल की तरह आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है। पंचांग के अनुसार, इस साल यह तिथि 26 जून दोपहर 1:24 बजे से शुरू होकर 27 जून सुबह 11:19 बजे तक रहेगी। लेकिन हिंदू परंपरा के अनुसार उदयातिथि को ही प्रमुख माना जाता है, इसलिए रथ यात्रा का शुभारंभ 27 जून, शुक्रवार को होगा।
इस दिन कई शुभ संयोग बन रहे हैं, जैसे सर्वार्थ सिद्धि योग, पुनर्वसु नक्षत्र और पुष्य नक्षत्र। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 5:25 बजे से 7:22 बजे तक रहेगा, और इसी समय तक पुनर्वसु नक्षत्र भी रहेगा, इसके बाद पुष्य नक्षत्र शुरू होगा। इसके अलावा, इस दिन का सबसे शुभ समय यानी अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11:56 बजे से 12:52 बजे तक रहेगा। इन सभी शुभ योगों के बीच रथ यात्रा का प्रारंभ अत्यंत पावन और शुभ माना जाता है, और इसी कारण लाखों श्रद्धालु हर साल पुरी पहुंचकर इस दिव्य आयोजन का हिस्सा बनते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025: पूरा कार्यक्रम (27 जून से 8 जुलाई तक)
- 27 जून, शुक्रवार – रथ यात्रा की शुरुआत
- 1 जुलाई, मंगलवार – हेरा पंचमी
- 4 जुलाई, शुक्रवार – संध्या दर्शन
- 5 जुलाई, शनिवार – बहुदा यात्रा
- 6 जुलाई, रविवार – सुना बेशा (सोने के गहनों में भगवान का श्रंगार)
- 7 जुलाई, सोमवार – अधरा पना
- 8 जुलाई, मंगलवार – नीलाद्रि विजय – रथ यात्रा का समापन
क्या है जगन्नाथ रथ यात्रा?
पुरी (ओडिशा) की मशहूर जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन भव्य रथों में बैठकर यात्रा पर निकलते हैं। देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं और मोटी रस्सियों से रथों को खींचने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है। रथों पर बैठाने से पहले पुरी के राजा ‘छेरा पन्हारा’ रस्म निभाते हैं, जिसमें वह सोने की झाड़ू से रथ का रास्ता साफ करते हैं। इसे बहुत पवित्र और भावुक परंपरा माना जाता है।
1. हेरा पंचमी – माता लक्ष्मी की नाराज़गी
जब भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन गुंडिचा मंदिर में पांच दिन ठहरते हैं, तो पांचवे दिन माता लक्ष्मी उनसे मिलने आती हैं। कहानी के अनुसार, माता लक्ष्मी नाराज़ होकर आती हैं क्योंकि भगवान बिना बताए घर से निकल जाते हैं। इस दिन को हेरा पंचमी कहा जाता है। यह दिन पति-पत्नी के प्रेम और मनमुटाव का एक सुंदर प्रतीक है।
2.संध्या दर्शन – शुभ दर्शन का अवसर
गुंडिचा मंदिर में रथ यात्रा के दौरान संध्या समय भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के विशेष दर्शन का आयोजन होता है। इसे संध्या दर्शन कहा जाता है। भक्त इस पावन मौके पर दर्शन करके अपने को धन्य मानते हैं और भगवान से सुख-शांति की कामना करते हैं।
3. बहुदा यात्रा – भगवान की घर वापसी
जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा गुंडिचा मंदिर में कुछ दिन बिताने के बाद वापस अपने घर (मुख्य मंदिर) लौटते हैं, तो उस यात्रा को बहुदा यात्रा कहते हैं। इस दौरान रथों को रास्ते में मौसी मंदिर (माँ अर्द्धासिनी का मंदिर) पर थोड़ी देर रोका जाता है। वहां भगवान को खास ओडिशा की मिठाई ‘पोडा पिठा’ का भोग लगाया जाता है, जो भगवान को बहुत प्रिय है।
4. सुना बेशा – स्वर्ण श्रृंगार का दिन
बहुदा यात्रा के अगले दिन, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी को सोने के आभूषणों से सजाया जाता है। इस रस्म को सुना बेशा कहते हैं। इस दिन भगवान का स्वरूप इतना भव्य होता है कि दर्शन करने वाले भक्त मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। माना जाता है कि इस रूप में भगवान राजा की तरह सिंहासन पर विराजते हैं और भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।
5. अधरा पना – भगवान को मीठा पेय अर्पित करना
अधरा पना एक खास परंपरा है जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी को एक ठंडा और मीठा पेय अर्पित किया जाता है। यह पेय पानी, दूध, चीनी, पनीर (छेना) और देसी मसालों को मिलाकर बड़े मिट्टी के मटकों में तैयार किया जाता है। यह रस्म यह दर्शाती है कि भगवान ने लम्बी यात्रा की है, अब उन्हें विश्राम और शीतलता की जरूरत है।
6. नीलाद्रि विजय – भगवान की वापसी का अंतिम पर्व
नीलाद्रि विजय रथ यात्रा का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी अपने मूल स्थान – श्रीमंदिर (पुरी मंदिर) के गर्भगृह में फिर से विराजमान होते हैं।
यह दिन इस बात का प्रतीक है कि भगवान अपनी यात्रा पूरी कर अपने भक्तों के पास घर वापस लौट आए हैं।
“नीलाद्रि” का अर्थ है – नीला पर्वत (पुरी मंदिर) और “विजय” का अर्थ है – वापसी या प्रवेश।
इस दिन मंदिर में विशेष पूजा होती है और भक्त भगवान की एक झलक पाने के लिए उमड़ पड़ते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी श्रद्धालु जगन्नाथ रथ यात्रा में भाग लेता है, उसके सारे पाप खत्म हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस पवित्र यात्रा में शामिल होने से इतना पुण्य मिलता है जितना सौ यज्ञ करने से मिलता है।
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को देखना, रथ खींचना या सिर्फ श्रद्धा से इसमें शामिल होना भी बहुत शुभ माना जाता है। इससे जीवन में शांति, सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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