ईरान इज़राइल युद्ध का असर भारत पर अब साफ दिखने लगा है — अगर यह जंग लंबी चली, तो पेट्रोल-डीजल से लेकर खाने-पीने तक हर चीज़ महंगी हो सकती है। आखिर कैसे पड़ेगा असर आपकी जेब पर? जानिए पूरी रिपोर्ट में।

- तेल की कीमतें 74 डॉलर/बैरेल तक पहुंचीं
- भारत 85% पेट्रोलियम आयात करता है
- होर्मुज रास्ता बंद हुआ तो सप्लाई पर असर
- 2030 तक भारत की तेल मांग तेज़ी से बढ़ेगी
अगर ईरान और इजरायल के बीच चल रहा युद्ध लंबे समय तक चलता है, तो इसका असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा और महंगाई बढ़ सकती है।
ईरान इज़राइल युद्ध का असर भारत पर भी गंभीर रूप से पड़ सकता है, क्योंकि भारत ऊर्जा के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर है।
अभी भारत में महंगाई की दर तीन प्रतिशत से नीचे आ गई है, जो देश की अर्थव्यवस्था और GDP की बढ़ोतरी के लिए अच्छा माना जा रहा है।
लेकिन जैसे ही ईरान-इजरायल युद्ध शुरू हुआ, कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने लगीं। पिछले शुक्रवार को कच्चा तेल करीब 74 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया, जबकि मई महीने में इसकी कीमत 60 से 65 डॉलर प्रति बैरल के बीच थी। ईरान खुद कच्चे तेल का एक बड़ा उत्पादक देश है। वहां हर दिन करीब 35 लाख बैरल तेल का उत्पादन होता है, जिनमें से लगभग 25 लाख बैरल दूसरे देशों को बेचा जाता है।
चीन ईरान के तेल का सबसे बड़ा खरीदार है। अगर युद्ध ज्यादा समय तक चला, तो ईरान में तेल उत्पादन रुक सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कमी हो जाएगी और दाम और ज्यादा बढ़ सकते हैं। इस स्थिति में ईरान इज़राइल युद्ध का असर भारत पर तेल की आपूर्ति और कीमतों के जरिए साफ दिखाई देगा।
अगर युद्ध लंबा चला, तो हो सकता है कि होर्मुज जलडमरूमध्य और लाल सागर से होकर जाने वाला रास्ता प्रभावित हो जाए। ईरान ने इन समुद्री रास्तों को बंद करने की चेतावनी दी है।
दुनिया में जितना पेट्रोलियम (तेल और गैस) इस्तेमाल होता है, उसमें से करीब 20% की सप्लाई इसी रास्ते से होती है। भारत में भी जो तेल यूएई, इराक और खाड़ी देशों से आता है, वह ज़्यादातर इसी मार्ग से होकर आता है। इस वजह से ईरान इज़राइल युद्ध का असर भारत पर ट्रांसपोर्टेशन और आपूर्ति श्रृंखला में बाधा के रूप में भी देखने को मिलेगा।
इसी कारण भारत का पेट्रोलियम मंत्रालय ईरान और इजरायल के बीच चल रहे संघर्ष पर लगातार नज़र रख रहा है। भारत अपनी ज़रूरत का लगभग 85% पेट्रोलियम आयात करता है और यह दुनिया में तेल खरीदने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है।
पेट्रोलियम महंगा होने से भारत का बढ़ेगा खर्च, महंगाई पर भी असर
विशेषज्ञों के अनुसार, होर्मुज जलडमरूमध्य ईरान के दक्षिण में स्थित है और यह फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ता है। यह रास्ता दुनिया में तेल और गैस की सप्लाई के लिए बहुत अहम है।
अगर यह रास्ता बंद होता है या प्रभावित होता है, तो पेट्रोलियम को दूसरे और लंबे रास्तों से भेजना पड़ेगा, जिससे ट्रांसपोर्ट की लागत बढ़ जाएगी। इसका सीधा असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा।
साथ ही, युद्ध के चलते शिपिंग कंपनियां इंश्योरेंस शुल्क भी बढ़ा सकती हैं, जिससे कुल खर्च और ज्यादा हो जाएगा। ईरान इज़राइल युद्ध का असर भारत पर इस रूप में दिखेगा कि सरकार को ज्यादा सब्सिडी या टैक्स कटौती करनी पड़ सकती है, जिससे फिस्कल डेफिसिट पर असर हो सकता है।
जब तेल महंगा होगा, तो भारत को ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ेगा, क्योंकि भारत अपनी जरूरत का 85% तेल बाहर से मंगाता है। इससे आयात बिल बढ़ेगा और देश में महंगाई भी बढ़ सकती है, जो आगे चलकर विकास दर को प्रभावित कर सकती है।
क्रयशक्ति पर पड़ेगा असर, घटेगी मांग
दुनियाभर में ईंधन यानी पेट्रोलियम पदार्थों पर भारी निर्भरता है। अगर इनकी कीमतें बढ़ती हैं, तो महंगाई पूरी दुनिया में असर दिखाएगी। महंगाई बढ़ने से आम लोगों की खरीदने की क्षमता (क्रयशक्ति) कम हो जाएगी, यानी लोग ज़रूरी चीजों पर ही खर्च करेंगे और गैर-ज़रूरी चीज़ों की मांग में गिरावट आ सकती है।
इसका असर केवल घरेलू बाज़ार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि वैश्विक व्यापार और निर्यात बाजार भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। मांग घटने से कई देशों के कारोबार पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। इस आर्थिक दबाव की सीधी झलक ईरान इज़राइल युद्ध का असर भारत पर कैसे पड़ रहा है, इससे मिलती है — खासकर जब उपभोक्ता खर्च घटे और बाजार ठंडा पड़े।
2030 तक भारत में बढ़ेगी तेल की मांग
नई दिल्ली, पेट्रः भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता और आयातक देश है, आने वाले वर्षों में अपनी तेज़ आर्थिक तरक्की के चलते वैश्विक तेल मांग में बड़ा योगदान देगा।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक भारत हर दिन 10 लाख बैरल अतिरिक्त तेल की मांग करेगा, जिससे दुनिया की कुल तेल खपत में बड़ा इज़ाफा होगा।
IEA का अनुमान है कि इस दशक के अंत तक दुनिया की कुल तेल मांग 2.5 मिलियन बैरल प्रति दिन बढ़ेगी, और यह संख्या 2030 तक 10.55 करोड़ बैरल प्रतिदिन तक पहुंच सकती है — जो अब तक का सबसे ऊंचा स्तर होगा।
भारत में तेल की मांग 2024 में जहां 56.40 लाख बैरल प्रतिदिन है, वहीं 2030 तक यह बढ़कर 66.60 लाख बैरल प्रतिदिन तक पहुंचने का अनुमान है। ऐसे समय में अगर संकट बना रहा तो ईरान इज़राइल युद्ध का असर भारत पर और भी ज्यादा गहरा हो सकता है — क्योंकि देश की ऊर्जा ज़रूरतें भी बढ़ रही होंगी।
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